Sunday, February 16, 2025

Framing of issue under Code of Civil Procedure, 1908

                                                              विवाद्यकों  की विरचना 

     (By- 1. Vandana Singh Katiyar, Advocate High Court 

             2. Vijay Kumar Katiyar, Additional District and Sessions Judge

परिचय-

यह  न्यायाधीशों व अधिवक्ताओं दोनों  के लिए   ही महत्वपूर्ण  अवधारणा है, उचित वाद बिन्दुओं   के बिना एक सिविल मामला ठीक से तय नहीं किया जा सकता है।आदेश  -14 नियम -1 से सिविल प्रक्रिया संहिता में वाद बिन्दुओं के निर्धारण  से  संबंधित प्रावधान किये गये हैं । यदि किसी वाद में  वाद बिंदु सम्यक रूप से विरचित किये गए हैं तो ही वाद का सम्यक निस्तारण संभव है। सामान्य चलन में कोई भी जज इनकी गंभीरता पर ध्यान नहीं देता , जब उसके द्वारा बहस सुनी जा चुकी होती है तब उसे इसका संज्ञान होता है। ज्यादातर अधिवक्ता भी वादबिंदुओं की तरफ ध्यान नहीं देते। जज भी अधिवक्ताओं द्वारा दी गयी सूची स्टेनो को दे देते हैं और स्टेनो टाइप कर देता है ,यह चलन उचित नहीं चूंकि गलत वादबिन्दुओं के आधार पर सही निर्णय पारित नहीं किया जा सकता। इसलिए यह न्यायालय का विधिक  दायित्व है कि वह वादबिन्दुओं की विरचना सम्यक रूप से करे। 

वादबिन्दु किसे कहते हैं -

                       सामान्य शब्दों में जब किसी एक बिंदु पर दो पक्षकारों में मतभेद हों तो उसे विवाद्यक कहते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि एक बिंदु पर समर्थन व खण्डन विवाद्यकों का सृजन करते हैं। व्यव्हार प्रक्रिया संहिता के आदेश- 14 नियम  -1 उपनियम-1   में  विवाद्यकों को परिभाषित किया गया कि "जब किसी तथ्य या विधि की तात्विक प्रतिपादना का एक पक्षकार समर्थन करता है और दूसरा पक्षकार खण्डन करता है तो इसे विवाद्यकों की संज्ञा दी जाती है। "

 प्रतिपादना किसे कहते हैं -

                 उक्त आदेश के नियम-1 के उपनियम-में प्रतिपादना को परिभाषित करते हुए कहा गया है  " कि  तात्विक प्रतिपादनायें विधि या तथ्य कि वे प्रतिपादनायें हैं जिन्हें वाद लाने का अपना अधिकार दर्शित करनें  लिए वादी को अभिकथित करना होगा या अपनी प्रतिरक्षा गठित करने के लिए प्रतिवादी को अभिकथित करना होगा। " इसका अभिप्राय यह है कि वह समस्त कथन जिन्हें वादी अपने वाद पत्र में अपनें वाद लाने के अधिकार को दर्शित करने के लिए करते है तथा प्रतिवादी अपनीं प्रतिरक्षा के लिए अपने लिखित उत्तर में करता है ,ये प्रतिपादनाएं तथ्य की ,विधि की या मिश्रित हो सकती हैं। 

विवाद्यकों के प्रकार-                                               

सामान्यता विवाद्यक तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं- 

  1 - तथ्य विवाद्यक

  2- विधि विवाद्यक 

  3- मिश्रित विवाद्यक 

विवाद्यक विरचित करने की सामग्री -  

                        अधोलिखित सामग्री के आधार पर विवाद्यकों की विरचना की जा सकती है-

1 - शपथ पत्र पर किये गए अभिकथनों पर , ऐसे कथन चाहे पक्षकारों द्वारा ,चाहे पक्षकारों की ओर से किसी व्यक्ति द्वारा या उनके अधिवक्ताओं द्वारा किये गए हों। 

2 -अभिवचनों में किये गए अभिकथन। 

3 - परिप्रश्नों के उत्तरों में किये गए अभिकथन। 

4 किसी पक्षकार द्वारा पेश की गयी दस्तावेज की अंतर्वस्तु । 

विरचना से पूर्व आज्ञापक आदेश का पालन अनिवार्य है-

               वाद बिंदुओं की विरचना से पूर्व धारा 89 सी पी सी तथा आदेश 10 नियम 1A से लगायत 1C का अनुपालन किया जाना आवश्यक है क्यों कि माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Afcons Infrastructure ltd. & Anr vs cherian varkey construction co. (p)Ltd.-civil appeal no-6000/2010 प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि वादबिन्दुओं  की विरचना से पूर्व न्यायालय को धारा 89 सी पी सी तथा आदेश 10 नियम 1A से लगायत 1C में दिए गए विकल्पों पर पहले विचार करना है और यदि न्यायालय का यह मत है की उक्त वाद मध्यस्थता केंद्र में संदर्भित किये जाने योग्य नहीं उक्त मत आदेशपत्रक में लिखने के उपरांत विवाद्यकों की विरचना की जाएगी। यहाँ यह  तथ्य विचारणीय है कि किसी वाद को मिडिएशन हेतु संदर्भित करना आज्ञापक नहीं इसका अभिप्राय यह है कि इस बिंदु पर विचार करना कि पत्रावली किसी वैकल्पिक फोरम को संदर्भित किये जाने योग्य है कि नहीं इस पर विचार किया जाना आज्ञापक है। यहां यह भी ध्यान रखना आवश्यक कि संदर्भित न किये जाने के कारणों का आदेशपत्रक पर उल्लिखित किया जाना आज्ञापक है। 

न्यायालय का दायित्व - 

                      विधि नें विवाद्यकों कि विरचना का दायित्व न्यायालय पर अधिरोपित किया है। न्यायालय के पास यह विवेकाधिकार है कि विवाद्यकों कि विरचना के लिए वह उभयपक्षों के अभिवचनों पर विचार करेगा तथा यदि न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है तो वह आदेश -10 नियम -2 के तहत पक्षकारों कि या उनके अधिवक्ताओं की परीक्षा कर सकेगा और यदि  न्यायालय को ऐसा लगता  विवाद्यकों की विरचना से पूर्व किसी साक्षी की परीक्षा आवश्यक है तो वह उसे तलब कर सकेगा तथा इस हेतु  किसी दस्तावेज का परिशीलन न्यायालय कर सकेगा और ऐसे दस्तावेज को तलब भी कर सकता है।

 विवाद्यकों की विरचना का लोप - 

                         विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि प्रत्येक तथ्य व विधि की प्रतिपादना के लिए सुभिन्न विवाद्यक विरचित किये जाने चाहिए और प्रत्येक विवाद्यक का विनिश्चय करते हुए निर्णय पारित किया जाना चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि विवाद्यकों का लोप अपीलीय न्यायालय को यह विवेकाधिकार प्रदान करता है कि ऐसे निर्णय को पुनः आदेश पारित करने के लिए प्रतिप्रेषित कर दे , लेकिन यह तब किया जाना चाहिए जब  ऐसे विवाद्यकों का लोप मामले को गुण -दोष पर प्रभावित करने वाला हो और पक्षकारों को किसी संकट में डालने वाला हो इसका अभिप्राय यह भी है कि यदि विवाद्यकों की विरचना का लोप मामले को गुण -दोष पर प्रभावित करने वाला नहीं है और पक्षकारों को किसी संकट में डालने वाला नहीं है तो पत्रावली को रिमाण्ड नहीं किया जायेगा। दूसरी तरफ यदि वाद बिंदु विरचित होने से रह गया है  और पक्षकारों  के द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत कर दिए गए हैं तथा पक्षकारों के अधिवक्ताओं ने इस बिंदु पर  बहस भी पेश कर दी है और उन बिंदुओं को विचार में लेते हुए आदेश भी पारित कर दिया है तो ऐसा निर्णय अपास्त नहीं किया जा सकता यद्यपि कि ऐसा विवाद्यक विरचित होने से रह गया था। ,इस हेतु अधोलिखित नजीरें देखें -        

1-Nagubai vs B. shama Rao-AIR 1956 sc 593. 

2-Sayeda akhtar vs Abdul Ahad-AIR 2003 sc 2985.

3-Bhuwan Singh vs Oriental Insurence co.-(2009)5 scc 136. 

क्या विवाद्यकों को संशोधित ,परवर्तित ,परिवर्धित व काटा जा सकता है - 

आदेश -14 नियम -5 सी पी सी यह प्रावधानित करता है कि डिक्री पारित करने से पूर्व कभी भी वाद बिंदुओं में संशोधन किया जा सकता है,अतिरिक्त विवाद्यक विरचित किये जा सकते हैं ,विवाद्यकों को पुरःस्थापित किया जा सकता है तथा विवाद्यकों को काटा जा सकता है। लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि ऐसा करने से पूर्व पक्षकारों को सुनवाई का अवसर अवश्य प्रदान करना चाहिए तथा उभयपक्षों को साक्ष्य का अवसर भी देना चाहिए। 

दोषपूर्ण विवाद्यकों पर पारित निर्णय -

                           यदि किसी दीवानी वाद में विवाद्यक गलत तरीके से विरचित किये गए है और दोषपूर्ण अभिमत के आधार पर निर्णय पारित किया गया है तो ऐसा निर्णय अपील में उलट दिया जायेगा और पत्रावली पुनः आदेश पारित करने के लिए रिमाण्ड कर दी जाएगी। दूसरी तरफ यद्यपि कई विवाद्यक गलत विरचित कर दिए गए है और न्यायालय ने सही अभिमत के आधार पर आदेश पारित किया है तो ऐसा निर्णय अपील में अपास्त नहीं किया जा सकता यदि न्याय का उद्देश्य विफल नहीं हो रहा है।  इस सम्बन्ध में अधोलिखित विधि व्यवस्था देखें -

· Md. Umarsaheb vs Kadalaskar- AIR 1970 SC61. 

क्या एक विवाद्यक के आधार पर वाद विनिश्चित किया जा सकता है -

आदेश-14 नियम -2 के उपनियम-2 सी पी सी में यह प्रावधानित किया गया है न्यायालय की यह राय है कि मामले या उसके किसी भाग का निपटारा केवल एक विधि विवाद्यक के आधार पर किया जा सकता है।ऐसा विवाद्यक न्यायालय की अधिकारिता से सम्बन्धित हो सकता है अथवा वर्तमान में प्रवृत किसी विधि द्वारा वर्जित।इस सम्बन्ध में अधोलिखित नजीर देखें -

Ramesh B Desai vs Vipin Vadilal Mehta-(2006) 5 SCC 638.

व्यावहारिक रूप से आप विवाद्यक कैसे विरचित करेंगे तथा आदेशपत्रक कैसे लिखेंगे -

                    जैसा कि विदित है विविध प्रकार के दीवानी वादों का विचरण दीवानी न्यायालय द्वारा किया जाता है , ऐसे में वास्तविक कठनाई न्यायालय के समक्ष यह होती है कि आदेश कैसे लिखे जाये और किन-किन व्यावहारिक विवाद्यकों की विरचना की जाय। ये नाना प्रकार के वादों का विवरण निम्नवत दिया जा रहा है -

1 - निषेधाज्ञा वाद 

                        निषेधाज्ञा वाद भी कई प्रकार के हो सकते है यथा - स्थाई निषेधाज्ञा वाद ,आज्ञापक व्यादेश ,ऐसे वाद जिसमें स्वत्व विवादित नहीं होता तथा ऐसे वाद जिसमें स्वत्व अप्रत्यक्ष रूप से विवादित रहता है। ऐसे व्यादेश वाद जिसमें स्वत्व विवादित नहीं होता उनमें स्वत्व से संबंधित विवाद्यक को विरचित किये जाने की आवश्यकता नहीं होती। मॉडल आर्डर इस प्रकार  है -

प्रारूप -1     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं , धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1 - क्या वादी विवादित संपत्ति का स्वामी व काबिज- दाखिल है ?

2 - क्या वादी  वादपत्र में कथित आधारों पर स्थाई निषेधाज्ञा का अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है

3 - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

4 - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

5 - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय  को प्राप्त नहीं है

6 - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

7 - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

8 - क्या वाद कालबाधित है ?

9 - अनुतोष ?

                उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 3 4 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो।

प्रारूप -2     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं , धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1  - क्या वादी  वादपत्र में कथित आधारों पर आज्ञापक  व्यादेश का अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है

2  - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

3  - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

4  - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय  को प्राप्त नहीं है

5  - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

6  - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

7  - क्या वाद कालबाधित है ?

8  - अनुतोष ?

            उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 2 3 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो।

विभाजन वाद - 

                विभाजन वाद में वाद बिंदु यदि सम्यक रूप से विरचित है तो वाद के निस्तारण में असुविधा नहीं होगी। विभाजन वाद में यह भी विचारणीय प्रश्न है कि सभी हिस्सेदारों के हिस्से के बारे में न्यायालय को अपना अभिमत व्यक्त करना चाहिए क्यों कि अंतिम डिक्री में प्रतिवादी भी अपना हिस्सा निर्धारित न्यायशुल्क अदा करके प्राप्त कर सकता है। आदेश के प्रारूप इस प्रकार है -

 प्रारूप -1     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं , धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1 - क्या  विवादित संपत्ति उभयपक्षों की संयुक्त अविभाजित संपत्ति है ,यदि हाँ तो वादी का उसमें कितना हिस्सा है ?

2 - क्या वादी  वादपत्र में कथित आधारों पर अपनें हिस्से को पृथक करवापाने का तथा उसपर कब्ज़ा -दखल प्राप्त करनें का अधिकारी है

3 - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

4 - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

5 - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय को प्राप्त नहीं है

6 - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

7 - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

8 - क्या वाद कालबाधित है ?

9 - अनुतोष ?

                उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 3 4 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो।

 धन वसूली वाद- 

                   धन वसूली के वाद दो कोटि के हो सकते है ,प्रथम - जिनमें कोई संपत्ति बंधक हो और दूसरे वे जिनमें कोई संपत्ति पहले से बंधक नहीं होती। प्रारूप इस प्रकार है - 

प्रारूप -1      

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं , धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1  - क्या वादी  वादपत्र में कथित आधारों पर वादपत्र   में वर्णित धनराशि ब्याज सहित प्रतिवादीगण से प्राप्त करने का अधिकारी है ?                        

 2  - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

3  - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

4  - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय        को प्राप्त नहीं है

5  - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

6  - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

7  - क्या वाद कालबाधित है ?

8  - अनुतोष ?

            उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 2 3 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो।

 विलेखों  के निरस्तीकरण के वाद -

                          दीवानी न्यायालय को विक्रय विलेखों ,वसीयत ,विक्रय करार के निरस्तीकरण आदि का विचारण करना पड़ता है। जिसके  लिए यह आवश्यक है की कपट ,मिथ्याव्यपदेशन ,असम्यक असर तथा प्रपीड़न  आड़े से सम्बंधित विवाद्यक तभी विरचित करना चाहिए जब इस बावत स्पष्ट अभिवचन किये गए हों। प्रारूप इस प्रकार है - 

प्रारूप -1     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं , धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1 - क्या प्रश्नगत विक्रय विलेख दिनांकित 12 /10 /1997 वादपत्र में कथित आधारों पर निरस्त किये जाने योग्य है    ?

2 - क्या प्रश्नगत विक्रय विलेख दिनांकित 12 /10 /1997 कपट पर आधारित है ?

3 - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

4 - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

5 - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय को प्राप्त नहीं है

6 - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

7 - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

8 - क्या वाद कालबाधित है ?

9 - अनुतोष ?

                उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 3 4 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो। 

घोषणात्मक वाद -

घोषणात्मक वाद भी दो प्रकार के होते है एक निखालिस घोषणात्मक वाद और दूसरे ऐसे घोषणात्मक वाद जिनमें स्वत्व की घोषणा के साथ कब्जा -दखल के वापसी की भी मांग की जाती है। कभी -कभी सिविल डेथ की घोषणा के वाद भी विचाराधीन होते हैं। प्रारूप इस प्रकार हैं - 

प्रारूप -1     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं  धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1 - क्या वादपत्र में कथित आधारों पर विवादित संपत्ति  के बावत वादी स्वत्व की घोषणा का अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है?

2 - क्या वादी प्रश्नगत संपत्ति का कब्ज़ा -दखल प्राप्त करने का अधिकारी है ?

3 - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

4 - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

5 - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय को प्राप्त नहीं है

6 - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

7 - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

8 - क्या वाद कालबाधित है ?

9 - अनुतोष ?

                उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 3 4 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो। 

संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन वाद -

                        यहाँ यह विचारणीय है की विशिष्ट अनुपालन अधिनियम -1963 में वर्ष 2018 में आमूलचूल संशोधन हो गए हैं यह संशोधन भारत सरकार के विधि व न्याय मंत्रालय द्वारा नोटिफिकेशन  नंबर s-0488(E)By 19/09/2018,द्वारा 01/10/2018 को लागू  कर दिया गया है। इसलिए विवाद्यक विरचित करते समय यह ध्यान रखना है कि वाद संशोधन के पूर्व का है या पश्चात् का , यदि वाद संशोधन के पश्चात् का है तो विशिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 16 20 से सम्बंधित विवाद्यकों  विरचना नहीं की जाएगी क्योंकि उक्त संशोधन के द्वारा न्यायालय का विवेकाधिकार समाप्त कर दिया गया है। इसलिए विवाद्यकों की विरचना के समय इस तथ्य को ध्यान रखना होगा। प्रारूप इसप्रकार हैं -

प्रारूप -1     

           " पुकार कराई गयी उभयपक्ष उपस्थित हैं  धारा - 89 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के विकल्पों पर विचार किय गया लेकिन न्यायालय  मत से उक्त वाद  संदर्भित किये जाने योग्य नहीं है ,अतः उभयपक्षों की विधि व तथ्य की प्रतिपादनाओं के आधार पर अधोलिखित विवाद्यक विरचित किये जा रहे हैं -

1 - क्या प्रश्नगत विक्रय करार का  सम्यक रूप से निष्पादन किया गया था ,यदि हाँ तो क्या वादी संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन के अनुतोष को प्राप्त करने का अधिकारी है?

2 - क्या वादी अपने पक्ष की संविदा के पालन के लिए हमेशा तत्पर व इच्छुक रहा है और आज भी है ?

3 - क्या वाद अल्पमूल्यांकित है ?

4 - क्या प्रदत्त न्यायशुल्क अपर्याप्त है ?

5 - क्या वाद के श्रवण का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय को प्राप्त नहीं है

6 - क्या वाद में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोष विद्यमान है ?  

7 - क्या वाद में अनावश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष विद्यमान है ?

8 - क्या वाद कालबाधित है ?

9 - अनुतोष ?

                उपर्युक्त के अलावा अन्य कोई विवाद्यक नहीं बनता है और न पक्षकारों द्वारा बल दिया गया है अतः पत्रावली वास्ते निस्तारण वाद बिंदु सं० 3 4 दिनाँक 15 /10 /2020 को पेश हो। 

निष्कर्ष -

          उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है की विवाद्यक दीवानी वाद के आधार स्तम्भ हैं और यदि आधार सही नहीं होगा तो कभी भी सुन्दर इमारत का निर्माण नहीं हो सकता। दूसरी तरफ जो प्रारूप ऊपर दिए गए हैं वह   अपने आप में परिपूर्ण नहीं हैं आवश्यकतानुसार  सुधार आपेक्षित हैं। इस आशा व उम्मीद के साथ यह लेख लिखा जा रहा है जिससे हमारे नवागन्तुक न्यायाधीशों ,जूनियर अधिवक्ताओं व प्रतियोगी छात्रों की  सामान्य सैद्धांतिक व व्यावहारिक समझ विकसित हो सके। 

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